
तहक्षी™ Tehxi
@yajnshri
श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र को संत चाबी लगाना कहते है 🧵 श्री ललिता सहस्रनाम को ऋषियों ने -“अक्षरों” के साथ एक अद्भुत चमत्कार दिया है
यह पाठ भगवान विष्णु के अवतार हयग्रीव ने ऋषि अगस्त्य को बताया था। यह ब्रह्माण्ड पुराण के ललितोपाख्यान खंड में हयग्रीव और अगस्त्य के बीच हुई बातचीत का हिस्सा है। सहस्रनाम का उपयोग देवी माँ को समर्पित विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों में किया जाता है। श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का गहरा आध्यात्मिक महत्व आत्मा को ऊपर उठाने और व्यक्ति को ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ने की क्षमता में निहित है।
यह ललिता सहस्रनाम पूजा विधानम पूरी तरह से ललिता देवी को समर्पित है। पूर्व भाग, स्तोत्र और उत्तर भाग। पूर्व भाग में इसकी उत्पत्ति का वर्णन है, अन्य स्तोत्र में 1000 नाम हैं और उत्तर भाग में ललिता सहस्रनाम के पाठ का पूरा विवरण और लाभ दिया गया है। घर पर ललिता सहस्रनाम पूजा में हिंदू मां के एक हजार नाम शामिल होते हैं देवी ललिता. घर पर ललिता सहस्रनाम पूजा करने के लिए, आप ब्रह्माण्ड पुराण में स्तोत्र पा सकते हैं।
आप किसी भी शुक्रवार, अष्टमी, नवमी, नवरात्रि या किसी भी शुभ दिन पर घर पर ललिता सहस्रनाम पूजा कर सकते हैं। 1शुक्ल पक्ष पंचमी – पांचवें दिन चंद्रमा के बढ़ते चरण के दौरान ललिता सहस्रनाम पूजा की जा सकती है। 2शुक्ल पक्ष षष्ठी - और इस विधान को करने के अन्य दिन चंद्रमा के बढ़ते चरण के दौरान छठा दिन है। 3हिंदू कैलेंडर में जिस दिन अश्लेषा (अयिल्यम) नक्षत्र होता है, वह पूजा करने के लिए भी शुभ दिन होता है। 4जब शुक्ल पक्ष षष्ठी और आश्लेषा नक्षत्र एक साथ उपस्थित हों तो पूजा करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
• ललिता सहस्रनाम पूजा विधानम करने का आदर्श समय शाम का होना चाहिए। • पूजा शुरू करने से पहले अनुष्ठान में भाग लेने वाले को स्नान करना चाहिए और मन में गणेश जी की प्रार्थना करनी चाहिए। • विधान आरंभ करने के लिए ललिता देवी की मूर्ति को गुलाबी रंग के कपड़े या लाल रंग के कपड़े पर रखें। • पूजा की दिशा उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए। • अगले चरण की ओर बढ़ते हुए गाय के घी का उपयोग करके दीया और अगरबत्ती जलाएं। • धूपबत्ती चंदन की होनी चाहिए। • अगला पंडित लोगों से देवी ललिता को फूल और मिठाई चढ़ाने के लिए कहेगा, क्योंकि उन्हें देवी को गुलाबी रंग के फूल चढ़ाने चाहिए। • विधि के अनुसार गुलाल चढ़ाया जाना चाहिए। • अंत में देवी को भोग और प्रसाद (भोग, नैवेद्य या प्रसाद) अर्पित करें, जो कि खीर होना चाहिए। • जब पूजा पूरी हो जाए तो आयोजकों को भोग को पहले एक विवाहित महिला को तथा फिर मित्रों और परिवार के सदस्यों में वितरित करना चाहिए। • व्यक्ति को ललिता सहस्रनाम से लिए गए देवी ललिता के मंत्र "नमः ललितै श्रीं ह्रीं ऐं" का 108 बार जाप करना चाहिए।
ललिता सहस्त्रनाम के जाप से लाभ • माँ ललिता धन, ऐश्वर्य अर्थात भोग के साथ साथ मोक्ष की भी देवी हैं। ललितोपाख्यान, ललिता सहस्रनाम, ललिता त्रिशति तथा ललिता अष्टोत्तरशतनामावली के पाठ के माध्यम से माता ललिता की आराधना की जाती है, जिनमें ललिता सहस्रनाम का विशेष महत्व है। देवी के इस सहस्त्रनाम का जाप कर आप उन गुणों को अपनी चेतना का भी हिस्सा बना सकते हैं और वो गुण आपमें भी समाहित हो जाते हैं। इस प्रकार देवी की विशेषताओं के साथ आपके गुणों का भी एकीकरण हो जाता है। उन गुणों को जागृत कर आप कई शक्तियों को जागृत कर सकते हैं जो आपको संसार की शक्तियों को समझने में मदद कर सकता है। • ललिता सहस्रनाम का पाठ मनुष्य की चेतना को शुद्ध करता है और मन को व्यर्थ चिंताओं और नकारात्मक विचारों से मुक्त करता है। • इसके नियमित पाठ से व्यक्ति निरोगी जीवन व्यतीत कर सकता है। • ललिता सहस्त्रनाम के पाठ से व्यक्ति लम्बी उम्र प्राप्त कर सकता है। • श्री ललिता सहस्त्रनाम के पाठ से अकाल मृत्यु व दुर्घटना का भय दूर होता है। इसलिए इसे जीवनदायिनी भी कहा जाता है। • ललिता सहस्रनाम एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है और आपको काले जादू से बचाता है। • श्री ललिता सहस्रनाम का नियमित पाठ से मनुष्य का दुर्भाग्य दूर होता है और यश एवं प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।
श्लोक लिखने की पद्धतिया होती है वह एक प्रकार के लेखन शैली का अनुशरण करती है जैसे गायत्री (24 अक्षर), उशनिक (28), अनुष्टुप (32), बृहथी (36), पंक्ति (40), त्रिष्टुप (44), और जगथी (48) अधिकांश प्रसिद्ध कार्यों की तरह, श्री ललिता सहस्रनाम भी अनुष्टुप शैली में रचा गया था। प्रत्येक पंक्ति में 16 अक्षर होते है , इस प्रकार दो पंक्ति वाले श्लोक में 32 अक्षर होते हैं।