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तहक्षी™ Tehxi

@yajnshri

Published: April 1, 2025
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भूत प्रेत बाधा किन ग्रह नक्षत्र के कारण होती हैं? 🧵 तथा निवारण जानिये , कृपया thread अंत तक अवश्य पढ़े ज्योतिष शास्त्र में भूत-प्रेत बाधा या नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रभाव को कुछ विशेष ग्रहों और योगों से जोड़ा जाता है। मुख्यतः निम्नलिखित ग्रह और उनकी स्थितियाँ इस प्रकार की बाधाओं से संबंधित मानी जाती हैं

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1. राहु और केतु राहु और केतु छाया ग्रह हैं और इन्हें रहस्यमय, अदृश्य शक्तियों और भ्रम का कारक माना जाता है। कुंडली में इनकी प्रतिकूल स्थिति भूत-प्रेत बाधा का संकेत दे सकती है। उदाहरण के लिए: • लग्न (प्रथम भाव) में राहु की उपस्थिति: यदि राहु लग्न में स्थित हो और उस पर शनि की दृष्टि हो, तो व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जाओं से प्रभावित हो सकता है। चंद्रमा के साथ राहु की युति: यदि लग्न में चंद्रमा और राहु साथ हों, और पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह स्थित हों, तो यह योग भूत-प्रेत बाधा का संकेत देता है।

2. चंद्रमा चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक ग्रह है। इसकी निर्बलता या पाप ग्रहों के साथ युति मानसिक अस्थिरता और भय को जन्म दे सकती है • अष्टम भाव में निर्बल चंद्रमा और शनि की युति: यह स्थिति पिशाच, भूत-प्रेत आदि का भय उत्पन्न कर सकती है। • षष्ठ या द्वादश भाव में चंद्रमा की स्थिति: यदि चंद्रमा इन भावों में मंगल, राहु या केतु के साथ हो, तो व्यक्ति को पिशाच भय हो सकता है।

3. शनि शनि को नकारात्मक ऊर्जाओं और कर्मों का फल देने वाला ग्रह माना जाता है। इसकी प्रतिकूल स्थिति भूत-प्रेत बाधा से जुड़ी हो सकती है • लग्न में शनि और राहु की युति: यह योग नकारात्मक विचारों या ऊर्जाओं की उपस्थिति का संकेत दे सकता है। • सप्तम भाव में शनि, राहु, केतु या मंगल की उपस्थिति: इन ग्रहों में से कोई भी यदि सप्तम भाव में स्थित हो, तो व्यक्ति भूत-प्रेत बाधा या ऊपरी हवा से प्रभावित हो सकता है।

4. विशेष योग कुछ विशिष्ट योग भी भूत-प्रेत बाधा से जुड़े माने जाते हैं • पिशाच योग: यदि चंद्रमा अष्टम भाव में निर्बल हो और शनि दूसरे भाव में स्थित हो, तो इसे पिशाच योग कहा जाता है, जो व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि से भय उत्पन्न कर सकता है। • चंद्रमा और राहु की युति लग्न में: यदि लग्न में चंद्रमा और राहु साथ हों, और पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह स्थित हों, तो यह योग भूत-प्रेत बाधा का संकेत देता है।

5. नक्षत्र और तिथि कुछ नक्षत्र और तिथियाँ भी भूत-प्रेत बाधा से जुड़ी मानी जाती हैं • वायु संज्ञक नक्षत्र: इन नक्षत्रों में जन्म लेने पर व्यक्ति को भूत-प्रेत बाधा का सामना करना पड़ सकता है। • रिक्ता तिथि एवं अमावस्या: इन तिथियों में जन्म लेने से प्रेत बाधा की संभावना बढ़ सकती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ज्योतिषीय योगों का प्रभाव व्यक्ति-विशेष और परिस्थिति के अनुसार भिन्न हो सकता है।

1. सनातन धर्म में ॐ का सबसे ज्यादा महत्व है। घर के मुख्य द्वार पर ॐ का प्रतीक चिन्ह लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा कभी प्रवेश नहीं करती है। इसके साथ ही घर के सभी सदस्यों को अभिमंत्रित ताबीज धारण करना चाहिए। 2. भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी जैसी बुरी आत्माओं से रक्षा करने के लिए घी या सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें। इस दीप से काजल बना लें। ये उपाय दीवाली की रात करना चाहिए। इस काजल को लगाने से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं। 3. रात्रि भोजन के पश्चात चांदी के कटोरे में कर्पूर व लौंग जला दें। यह उपाय देवस्थान या किसी पवित्र स्थान पर इससे आकस्मिक आने वाले संकटों से बचेंगे व बुरी शक्तियां दूर रहेंगी। यह उपाय सोने से पूर्व करें।

4. धतूरे का पौधा पुष्य नक्षत्र में जमीन में इस तरह से दबाएं कि जड़ वाला हिस्सा ऊपर रहे इससे प्रेत बाधा नही आती एवं परिवार में सुख शांति बनी रहती है। घर में कभी नकारात्मक शक्तियां नहीं आती है। 5. अशोक के पेड़ के सात पत्ते मंदिर में रखकर उनकी पूजा करें। इन पत्तों के सूखने पर नए पत्ते रखें। जो पत्ते सूख गए हैं उन्हें पीपल के पेड़ के नीचे पुनः रख दें। ऐसा करने पर भूत-पिशाच निकट नहीं आएंगे।

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